Paramparagat Krishi Vikas Yojana

भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां की अधिकांश जनसंख्या आज भी खेती पर निर्भर है। लेकिन रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग ने खेती की गुणवत्ता और मिट्टी की उर्वरता को प्रभावित किया है। ऐसे समय में परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana) किसानों को प्राकृतिक और जैविक खेती की ओर प्रेरित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

परिचय

परंपरागत कृषि विकास योजना की शुरुआत भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 में की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करना और उन्हें इस दिशा में प्रशिक्षण, संसाधन और सहायता प्रदान करना है। इस योजना को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के अंतर्गत लागू किया गया है।

मुख्य उद्देश्य

परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana) का प्रमुख उद्देश्य किसानों को समूहों में संगठित करके 50 एकड़ भूमि पर जैविक खेती के लिए प्रशिक्षित करना है। इस योजना के अंतर्गत किसान रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग छोड़कर गोबर, वर्मी कंपोस्ट, नीम के तेल, और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से खेती करना सीखते हैं।

योजना की प्रमुख विशेषताएं

  1. क्लस्टर आधारित खेती: योजना के तहत किसानों को 20 किसानों के समूहों में संगठित किया जाता है और उन्हें 50 एकड़ भूमि पर जैविक खेती करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
  2. प्रशिक्षण और सहायता: किसानों को जैविक खाद बनाने, कीट नियंत्रण के पारंपरिक उपायों और प्रमाणन की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाती है।
  3. प्रमाणन: जैविक उत्पादों को बाज़ार में पहचान दिलाने के लिए Participatory Guarantee System (PGS) के तहत प्रमाणन की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
  4. वित्तीय सहायता: केंद्र सरकार प्रत्येक किसान को तीन वर्षों के लिए लगभग ₹50,000 प्रति एकड़ की वित्तीय सहायता प्रदान करती है। यह राशि जैविक खाद, बीज, प्रशिक्षण, और विपणन में खर्च की जाती है।

योजना का प्रभाव

इस योजना से देशभर के लाखों किसानों को लाभ हुआ है। न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ी है, बल्कि उपभोक्ताओं को भी रासायनिक रहित, पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य उत्पाद प्राप्त हो रहे हैं। साथ ही, जैविक उत्पादों की मांग अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी बढ़ रही है, जिससे किसानों की आय में भी वृद्धि हो रही है।

निष्कर्ष

परंपरागत कृषि विकास योजना न केवल एक पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धति को बढ़ावा देती है, बल्कि किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। आने वाले समय में यह योजना भारत को “जैविक कृषि का वैश्विक केंद्र” बनाने में मदद कर सकती है।

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